-हर्ष नारायण श्रीवास्तव
माँ मैं हैवान नही था,
तेरी कोख में पला श्राप नही था,
हाँ समाज केे फ़रेबो से तो मैं अन्जान था,
पर तेरे दिए संस्कारों का तो मुझे ज्ञान था,
खुद से पहले दूसरे का सम्मान करना तूने ही सिखाया था,
लड़कीओ को देवी का दर्जा देना ये तूने ही बताया था,
बहन तेरी राखी कि इज़्ज़त मैंने बखूबी निभाई थी,
किसी दूसरे की राखी पे मैंने आँख न बुरी लगाई थी,
एक बाप केे लिए बेटी की कीमत क्या होती है ये पापा के प्यार ने बताया था,
बस इसी संस्कारों को मैंने अपनी आखरी साँस तक निभाया था,
बस मुझे गलत मत समझना माँ मैं तेरी कोख में पला श्राप नही था,
पापा आपकी इज़्ज़त का दाग नहीं था,
बहना तेरी राखी का अपमान नही था,
मै हैवान नही था||